हिमालय का रहस्य:- हिमालय सदियों से रहस्यों और अद्भुत कथाओं का केंद्र रहा है। इन विशाल पर्वतों की गोद में न जाने कितनी ऐसी घटनाएं और प्राणी छिपे हुए हैं, जिनके बारे में आज भी मानव केवल अनुमान ही लगा सकते है। इन्हीं रहस्यों में एक नाम बार-बार सामने आता है — येती, जिसे लोग हिम मानव, स्नोमैन या तिब्बती भाषा में ‘मेतो कांगमी’ कहते हैं।
येती को लेकर दुनियाभर में अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ इसे जंगली जानवर मानते हैं, तो कुछ इसे हिमालयी मिथक। लेकिन भारतीय आध्यात्मिकता और पुराणों के नजरिए से एक सवाल बार-बार उठता है — क्या येती वास्तव में हनुमान जी की वानर जाति से जुड़ा दिव्य प्राणी हो सकता है?
हिंदू धर्म में वानर जाति का उल्लेख केवल पौराणिक कथा नहीं बल्कि एक जीवंत परंपरा का हिस्सा है। वाल्मीकि रामायण, महाभारत और स्कंद पुराण जैसे ग्रंथों में गंधमादन पर्वत का वर्णन मिलता है। यह वही स्थान है, जहां कहा जाता है कि दिव्य वानर योद्धा, किन्नर, गंधर्व और सिद्ध महापुरुष आज भी निवास करते हैं।
हनुमान जी को अजर-अमर माना जाता है और मान्यता है कि वे आज भी धरती पर जीवित हैं। उनके साथ उनकी वानर जाति के कुछ अन्य दिव्य योद्धा भी हिमालय के गुप्त स्थानों में रहते हैं।
दूसरी ओर, येती का उल्लेख भी ठीक उन्हीं क्षेत्रों में मिलता है। नेपाल, भूटान, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और तिब्बत के लोग पीढ़ियों से येती के अस्तित्व की बात करते आ रहे हैं। लोककथाओं के अनुसार, येती एक अत्यंत बलशाली, विशाल और घने बालों वाला प्राणी है, जो बर्फ से ढकी पहाड़ियों में रहता है। वह इंसानों से दूरी बनाए रखता है और आमतौर पर लोगों की नजरों से छिपा रहता है।
लोकमान्यताओं के अनुसार, येती कोई हिंसक प्राणी नहीं है। वह पूरी तरह से शाकाहारी है और अपनी जरूरत भर जड़ी-बूटियों, जड़ों, पत्तों और फल-फूल से जीवन यापन करता है। खास बात यह भी है कि येती को लेकर जो कथाएं प्रचलित हैं, उनमें उसे हमेशा बेहद समझदार, शांत और बुद्धिमान प्राणी के रूप में दर्शाया गया है। वह प्राकृतिक आपदाओं के समय आसपास के जीवों की रक्षा करता है।
अगर हम आध्यात्मिक नजरिए से देखें तो ये कोई संयोग नहीं है कि जिस प्रकार हनुमान जी का चरित्र अति बलशाली, बुद्धिमान, ब्रह्मचारी और पूर्णत: शाकाहारी है, ठीक वही गुण येती के बारे में लोककथाओं में भी मिलते हैं।
कई साधु-संतों का मानना है कि हिमालय के अत्यंत दुर्गम क्षेत्रों में आज भी एक दिव्य वानर जाति मौजूद है। यह जाति हनुमान जी के मार्गदर्शन में तपस्या करती है और साल में एक विशेष अवसर पर हनुमान जी स्वयं प्रकट होकर उनसे मिलने आते हैं।
हालांकि, वैज्ञानिक समुदाय इस विषय को मिथक मानता है। जब-जब येती के पैरों के निशान या बाल मिले, तो उनकी डीएनए जांच में अधिकतर हिमालयी भालू या अन्य वन्य जीवों का परिणाम सामने आया।
फिर भी, यह तथ्य आज भी अनसुलझा है कि इतनी बड़ी संख्या में स्थानीय लोग, पीढ़ी दर पीढ़ी, येती को देखकर डरते रहे या उनका जिक्र करते रहे। क्या ये केवल भ्रम था, या फिर विज्ञान की समझ से परे कोई रहस्य?
आध्यात्मिक साधकों की दृष्टि से येती को मात्र एक जंगली प्राणी मानना भूल होगी। उनके अनुसार येती न तो सिर्फ जीव है और न ही पूरी तरह से मानव। वह एक ‘अर्धमानव, अर्धदिव्य’ प्राणी है, जिसकी चेतना सामान्य जीवों से कहीं ऊंची है। वह प्रकृति के नियमों के साथ इतना घुल-मिल चुका है कि उसे देख पाना, समझ पाना या पकड़ पाना सामान्य मानव के लिए असंभव है।
क्या येती वास्तव में हनुमान जी की वानर जाति से जुड़ा दिव्य योद्धा है? इसका उत्तर विज्ञान के पास फिलहाल नहीं है, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से यह एक जीवंत सत्य है। हो सकता है कि हिमालय की बर्फीली चट्टानों के बीच, जंगलों की गहराई में या गंधमादन पर्वत की गोपनीय गुफाओं में आज भी ये दिव्य प्राणी निवास कर रहे हों। वे मानवता की नजरों से ओझल हैं, लेकिन प्रकृति और ब्रह्मांड की चेतना में आज भी सक्रिय हैं।
जहां विज्ञान प्रश्न करता है, वहीं अध्यात्म उत्तर देता है। येती और वानर जाति का यह रहस्य तब तक बना रहेगा, जब तक कोई सच्चा साधक या वैज्ञानिक उस रहस्य के पर्दे को पूरी तरह उठा नहीं देता।