पूर्व सैनिकों के अधिकारों से जुडे मामले में आर्म्ड फोर्सेज़ ट्रिब्यूनल, रीजनल बेंच ने सुनाया एतिहासिक फैसला

29/9/25 लखनऊ:- लंबे आर्थिक और मानसिक संघर्ष के बाद मिली बड़ी राहत

पूर्व सैनिकों के अधिकारों से जुड़ा एक ऐतिहासिक और सनसनीखेज फैसला लखनऊ स्थित आर्म्ड फोर्सेज़ ट्रिब्यूनल, रीजनल बेंच ने सुनाया है। जालौन जिले के निनौली जागीर निवासी हिमांशु रजावत को ट्रिब्यूनल ने इनवैलिड पेंशन देने का आदेश दिया है।

याची के अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने अदालत के समक्ष शिव दास बनाम भारत संघ (2007) और हालिया मंत्रालय आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि- “मानवता और न्याय, दोनों यही कहते हैं कि छोटी सेवा को आधार बनाकर ऐसे जवान को भूखा नहीं छोड़ा जा सकता जो खुद की गलती से नहीं, बल्कि बीमारी के कारण बाहर हुआ हो।” पेंशन याची का संवैधानिक और मानवीय अधिकार है।

मामला यह था कि, हिमांशु रजावत ने 14 दिसम्बर 2017 को भारतीय सेना की ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट में भर्ती होकर देश की सेवा शुरू की थी। लेकिन किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। केवल दो वर्ष 25 दिन की सेवा के बाद ही उन्हें गंभीर मानसिक बीमारी हो गई। नतीजतन, 12 जनवरी 2020 को मेडिकल बोर्ड की सिफारिश पर उन्हें इनवैलिडेड आउट कर दिया गया।

सेना से निकाले जाने के बाद हिमांशु रजावत और उनके परिवार की ज़िंदगी अचानक अंधेरे में डूब गई। बीमारी के कारण न तो वह किसी नौकरी में लग पाए और न ही सेना से पेंशन का सहारा मिला। घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ती चली गई।

कई बार पेंशन के लिए आवेदन करने के बावजूद, सेना और मंत्रालय ने यह कहकर उनका दावा ठुकरा दिया कि उनकी सेवा अवधि 10 वर्ष से कम है, जबकि नियमों के अनुसार केवल दस वर्ष की सेवा पूरी करने वालों को ही पेंशन मिलती है।

रिवार की आर्थिक तंगी इतनी बढ़ गई कि रोज़मर्रा का खर्च भी मुश्किल से चलने लगा। पत्नी निकिता कुमारी ने अपने मायके और गाँव के सहारे परिवार को संभालने की कोशिश की। लेकिन लंबी बीमारी और बिना पेंशन के जीवन ने पूरे परिवार को मानसिक और आर्थिक रूप से तोड़ दिया।

हिमांशु रजावत के पिता अमोल सिंह रजावत और पत्नी लगातार प्रशासनिक दफ़्तरों, रिकॉर्ड ऑफिस और मंत्रालय के चक्कर लगाते रहे, लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा ही हाथ लगी।

हिमांशु रजावत को सेना में केवल दो वर्ष 25 दिन की सेवा के बाद ही गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या के कारण 12 जनवरी 2020 को इनवैलिडेड आउट कर दिया गया था। सामान्यतः दस वर्ष की सेवा से कम वाले सैनिकों को पेंशन का लाभ नहीं मिलता।

लेकिन ट्रिब्यूनल ने साफ कहा- “मानसिक या शारीरिक अक्षमता के कारण यदि कोई जवान हमेशा के लिए फौजी व नागरिक नौकरी दोनों से वंचित हो जाए, तो उसे इनवैलिड पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता।“

न्यायमूर्ति अनिल कुमार (न्यायिक सदस्य) और ले. जनरल अनिल पुरी (प्रशासनिक सदस्य) की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि, याची इनवैलिड पेंशन का हकदार है, आदेश का पालन चार माह में होना अनिवार्य है। यदि देरी हुई तो सरकार को बकाया राशि पर 8% वार्षिक ब्याज चुकाना पड़ेगा।

फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए हिमांशु रजावत की पत्नी श्रीमती निकिता कुमारी ने भावुक होकर कहा-“यह फैसला हमारे लिए जीवनदान जैसा है। वर्षों से हम आर्थिक और मानसिक संघर्ष कर रहे थे। अब हमें विश्वास है कि सरकार शीघ्र आदेश का पालन करेगी।”

फैसला न केवल याची के लिए राहत है, बल्कि उन सभी सैनिक परिवारों के लिए एक नई उम्मीद की किरण है, जिन्हें बीमारी या मानसिक स्वास्थ्य कारणों से सेवा से पहले ही बाहर होना पड़ा।

अधिवक्ता विजय कुमार पांडेय ने कहा-“यह निर्णय भविष्य में हजारों जवानों और उनके परिवारों को न्याय दिलाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।

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